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उ॒त घा॒ नेमो॒ अस्तु॑तः॒ पुमाँ॒ इति॑ ब्रुवे प॒णिः। स वैर॑देय॒ इत्स॒मः ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta ghā nemo astutaḥ pumām̐ iti bruve paṇiḥ | sa vairadeya it samaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। घ॒। नेमः॑। अस्तु॑तः। पुमा॑न्। इति॑। ब्रु॒वे॒। प॒णिः। सः। वैर॑ऽदेये। इत्। स॒मः ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:27» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अस्तुतः) नहीं प्रशंसा किया गया (उत) और (नेमः) आधे का अधिकारी (घा) ही (वैरदेये) वैर देने योग्य जिससे उसमें (पुमान्) पुरुष और जो (पणिः) प्रशंसित वर्त्तमान है (सः, इत्) वही (समः) तुल्य है (इति) इस प्रकार से मैं (ब्रुवे) कहता हूँ ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो आलस्ययुक्त जन श्रेष्ठ कर्म्मों में नहीं प्रवृत्त होता है और दूसरा विद्वान् पुरुष सत्य और असत्य को जानकर सत्य का आचरण नहीं करता है, वे दोनों तुल्य अधर्मात्मा हैं, यह जानना चाहिये ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! योऽस्तुत उत नेमो घा वैरदेये पुमान् यश्च पणिर्वर्त्तते स इत्सम इत्यहं ब्रुवे ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (घा) एव। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (नेमः) अर्द्धाधिकारी (अस्तुतः) अप्रशंसितः (पुमान्) पुरुषः (इति) अनेन प्रकारेण (ब्रुवे) (पणिः) प्रशंसितः (सः) (वैरदेये) वैरं देयं येन तस्मिन् (इत्) एव (समः) तुल्यः ॥८॥
भावार्थभाषाः - योऽलसः सत्कर्मसु न प्रवर्त्तते द्वितीयो विद्वान् सत्याऽसत्यं विज्ञाय सत्यं नाचरति तौ द्वौ तुल्यावधर्मात्मानौ वर्त्तेते इति बोध्यम् ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो आळशी असतो व श्रेष्ठ कर्मात प्रवृत्त होत नाही. दुसरा विद्वान असून सत्य व असत्य जाणून आचरण करत नाही. ते दोघेही सारखेच अधार्मिक आहेत, हे जाणले पाहिजे. ॥ ८ ॥